
यह पुस्तक पृथ्वी पर मानव वितरण के विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं की व्याख्या करती है। समकालीन युग में, प्रत्येक मानव सभ्यता में मानव व्यवहार को आकार देने में सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। पिछले पचास वर्षों में, सामाजिक और सांस्कृतिक भूगोल ने, भूगोल के संपूर्ण विषय के लिए शोधकर्ताओं के समक्ष नए और विविध आयाम खोले हैं। संस्कृतियों के आधुनिकीकरण के साथ, हमारी युवा पीढ़ी के बीच सामुदायिक पहचान एक नया आकार ले रही है और पिछले पचास वर्षों में आलोचनात्मक और परिघटना-संबंधी दृष्टिकोणों के विकास ने इन दोनों उप-क्षेत्रों को और मज़बूत किया है।
यह पुस्तक पृथ्वी पर किसी भी मानव सभ्यता के उद्भव और विकास को इंगित करते हुए, उसके सामाजिक और सांस्कृतिक तत्वों की समकालीन विशेषताओं के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें सामाजिक प्रक्रियाएँ, सामाजिक समस्याएँ, वैश्वीकरण और विकास के सांस्कृतिक आयाम, प्रौद्योगिकी और सांस्कृतिक परिवर्तन, समुदायों का संस्थागतकरण, सांस्कृतिक बहुलता जैसे विशिष्ट पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गई है। अंतरराष्ट्रीयतावाद, साइबर संस्कृति, नई प्रौद्योगिकी के प्रभाव और संचार के आभासी माध्यमों की अवधारणाओं पर भी गहराई से चर्चा की गई है, जिसमें हमारी सामाजिक संरचना पर उनके प्रभाव का उल्लेख किया गया है। एक विशिष्ट क्षेत्रीय पहचान के निर्माण में सामाजिक गतिशीलता की भूमिका और संकर संस्कृति एवं सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन की अवधारणाओं को भी विस्तार से समझाया गया है। इस प्रकार, यह पुस्तक मानव सभ्यता के वर्तमान सामाजिक और सांस्कृतिक तत्वों को समझने में मदद साबित करती है|
लक्षित दर्शक
• बी.ए./बी.एससी. भूगोल
• एम.ए./एम.एससी. भूगोल
